हर खुशी है लोगो के दामन में , पर एक हसी के लिए वक्त नही ।
दिन रात दौड़ती दुनिया में, ज़िन्दगी के लिए ही वक्त नही ।
माँ की गोद का एहसास तो है , पर माँ को माँ कहने का वक्त नही ।
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके , अब उन्हें दफनाने का भी वक्त नही।
आंखों में है नींद भरी, पर सोने का ही वक्त नही ।
पराये एहसासों की क्या कद्र जब अपने सपनोके लिए ही वक्त नही ।
2 comments:
Received this text as a message last night, so true it is....
,how well said.Waqt nahin.
I fail to understand as to why have become so mechanical and uncaring.Life is becoming a routine where we do not find time even for our family.
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