Wednesday, May 20, 2009

वक्त नही

हर खुशी है लोगो के दामन में , पर एक हसी के लिए वक्त नही

दिन रात दौड़ती दुनिया में, ज़िन्दगी के लिए ही वक्त नही

माँ की गो का एहसास तो है , पर माँ को माँ कहने का वक्त नही

सारे रिश्तों को तो हम मार चुके , अब उन्हें दफनाने का भी वक्त नही

आंखों में है नींद भरी, पर सोने का ही वक्त नही

पराये एहसासों की क्या कद्र जब अपने सपनोके लिए ही वक्त नही

तू ही बता ज़िन्दगी इस ज़िन्दगी का क्या होगा , की हर पल मरने वालो को जीने का भी वक्त नही। ।


2 comments:

Rashmi Jain said...

Received this text as a message last night, so true it is....

BK Chowla, said...

,how well said.Waqt nahin.
I fail to understand as to why have become so mechanical and uncaring.Life is becoming a routine where we do not find time even for our family.